एहसास इस पल का...

एहसास इस पल का...
जिंदगी का रुख कब करवट ले जाए!
पता नहीं..
टूट कर बिखर जाए, या संवर जाए!
पता नहीं..
कोई साथ छोड़ जाए, या कश्ती में बैठा साथ में जाए!
पता नहीं..
किसे हम छोड़ दें, कोई वक्त में पीछे छूट जाए!
पता नहीं..
कब अपने गैर बन जाए, तो कब गैरों से नाता जुड़ जाए!
पता नहीं..
भूत तो बीत गया और भविष्य का लेखा पता नहीं..
ए मनुष्य, क्युँ गुरूर में अंधे बैठे हो ?
किस झूठे आवरण में छिप कर ऐठे हो ?
सत्य पहचानो, अपने वर्तमान को जानो |
जिंदगी में वर्तमान के हर क्षण का,
तुम्हें पता है |
हर वह इंसान, अपना या पराया,
तुम्हें पता है |
हर वह कर्म, अच्छा या बुरा,
तुम्हें पता है |
हर वह संकल्प, सरल या दुर्गम,
तुम्हें पता है |
अंजान डगर छोड़, सत्य के दर्पण को देखो |
चेतना जागृत कर, झूठे आवरण को देखो |
अज्ञान से ज्ञान की कश्ती ही – है यह जीवन |
वर्तमान की अविरल धारा में बहते जाना ही – है यह जीवन ||