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मेरा प्रणाम, अनाम योद्धाओं के नाम



दोस्तों, जिन वीरों ने देश की आजादी तथा देशमे शांति बरकरार रहने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है, उनके प्रति हम क्या लिखें? न हम कभी उनके जैसा साहस दिखा पायें है, और ना ही कभी अपने घर, संसार को छोड़ कर, अपना सब कुछ देश के लिए अर्पित किया है।

लेकिन मैं ये जरूर जानती हूँ की, आज हम जो चैन और सुकून की जिंदगी जीते हैं, वह उन सब जाने अनजाने वीरों के बलिदान की बदौलत ही हमें मिली हैं।

मुझें याद हैं, जब मै कारगिल गयीं थी, तब वहां के सैनिकों से युध्द की कथाओं को सुनकर रोंगटे खड़े हो गए। हर कोई सैनिक अपने आप मे एक मिसाल छोड़कर गये है।कैप्टन विक्रम बात्रा ने उनके मित्र को एक खत में लिखा है

"कि मै वापस आऊंगा या तो तिरंगा फहराकर या तो तिरंगे में लिपटकर"। मेजर विजयंत थापर कहते है कि "अगर मुझे अगला जन्म मिले, तो मै एक सैनिक का ही जन्म चाहता हू।” यह और ऐसी कई कहानिया सुनने को मिली।


कारगिल युद्ध से जुडी ऐसी लाखों कहानियाँ है, जो हमारे वीर जवानों की जिंदगी की छोटीसी झलक हमे दिखलाती है। एक नौजवान सैनिक का पत्र पढ़ा, जिसमें वह अपनें पिता के सामने अपनी बहादुरी की कथा सुनाता है। कहता हैं की, “आप मेरी चिंता मत करे, क्यों कि मेरे पास तो आपकी दुआएं है।” अर्थात् उसे वीर गति प्राप्त हो जातीं है। और ईसी को वह अपने जीवन की सार्थकता मानते है। लेकिन एक खत पढनेमें आया, जिस से मेरी आँखे भर आई। सैनिक लिखता है कि, “युध्द के थोड़े ही दिनों बाद लोग हमें भूल जायेंगे।” ऐसे अनेक वीर है, जिन के नाम भी दुनिया के सामने नही आये है।





मराठी भाषा में एक बहोत ही सुन्दर रचना है, जिसमें कविवर्य कुसुमाग्रज एक अनाम वीर के प्रति अपनी श्रद्धा जताते हुए ये कहतें है,


क्या हुआ अगर किसी ने तुम्हारे शहीद होने पर कोई दीप नहीं जलाया,

क्या हुआ अगर किसी ने तुम्हारी याद में कोई स्मारक नहीं बनाया,

क्या हुआ किसी ने तुम्हारी प्रशंसा में कोई गीत नहीं गाया,

इन सबके ना होने से तुम्हारा बलिदान छोटा नहीं हो जाता,

जब जब गगन में सूरज उगता है, वो मुझे हर रोज तुम्हारी याद दिलाता है, क्यों कि केवल तुम्हारी वजह से ही हमें यह जिंदगी मिलतीं हैं, हमारी जाने सलामत रह पातीं है। तुम तो मृत्युंजय हो।


"अनामवीरा"

इस मराठी कविता को मैंने हिंदी में भाषांतरित करनें की कोशिश की है।

मराठी कविता को लता मंगेशकर जी ने गाया है। मेरी यह हिंदी रचना भी उसी धुन में गायी जा सकती हैं।

लिजीये प्रस्तुत है,


अनाम वीरों, जहांपे तुमने त्याग दिये थे प्राण

जला न कोई दीप वहां पर, नही हुआ सम्मान॥


भडक उठी जब युद्ध की ज्वाला देशकी सीमापर,

निकल पडे तुम आगमे जलने सब कर न्योछावर॥



शाम सुनहरी जैसे अंधेरी रात मे घुल जाये

निर्भय निस्पृह तुम तेजस्वी, मौत को अपनाये॥



गीत किसी ने गर ना गाये तेरी प्रशंसा पर

सफल है फिर भी मरना तुम्हारा देश की सीमा पर॥



अंधियारेसे जब जब निकले सुबहाका तारा

चरण तुम्हारे हे म्रुत्युंजय प्रणाम ये मेरा ॥


- डॉ. अंजली देशपांडे

१५ ऑगस्ट २०२०


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