घर की अनिवासी बेटी : प्रतिक्षा लोढ़ा

हाथ में कमल✍ लिए शुरूआत हुई,
इसी दौरान मेरी खुद से मुलाकात हुई ,
जब गाड़ी🚗 में बैठ कर सोने का सोचा -
तब पास बैठे मम्मी-पापा के मन में सवाल आया
बेटा तू ठीक तो है ना ?
तुझे कोई दिक्कत तो नहीं ना ?
तेरे पास सब कुछ है ना ?
यह सुनकर ऐसा लग रहा था मानो
कान👂 ये सुनने का इंतजार कर रहा हो ,
जुबान बताने का और
आंखों 🥺से आंसू की लड़की का बह जाने का।
दिल ❤कर रहा था मानो सब कुछ बता दू
हॉस्टल में सब कुछ है मां ,
बस खाते🥙 समय पापा की डांट नहीं मिलती ।
बाकी खुश हूं मैं यहां
मगर , बिन मांगे रोटी तक नहीं मिलती ।
तू तो जानती है ना पसंद मेरी पर ,
यहां तो पसंद की सब्जी तक नहीं मिलते हैं ।
शुक्र है उस फोन📞 का जो मुझे तुझ से जोड़ता है,
शुक्र है उस फोन 📞का जो मुझे तुझ से जोड़ता है,
मुलाकात ना सही आवाज सुनाई देती है ,
सुबह 🌅तो मैं तब भी उठा करती थी ,
आज भी उठा करती हूं ।
सुबह🌅 तो मैं तब भी उठा करती थी,
आज भी उठा करती हूं ।
बस मां के लाडो आवाज से नहीं
अलार्म ⏰से मन भर लेती हूं,
और शायद इसीलिए मैंने अपने अलार्म
की रिंगटोन भी लाडू रखी है ।
बस यहां से निकलकर घर 🏡जल्दी जाना है,
क्योंकि याद बहुत आ रही है
छुट्टी तो बस एक बहाना है ।
अब कॉलेज से घर लौटने की जल्दी नहीं होती ,
अब कॉलेज से घर लौटने की जल्दी नहीं होती
आंखों में इंतजार लिए मां जो नहीं होते।
- प्रतिक्षा लोढ़ा

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