रूबरू

ऐ कलम तू मेरा जरिया है,
खुद से रूबरू होने का |
कितना सच, कितना झूठ,
एक पहेली से उभरने का |
किस धोखे के आवरण में,
जी रही थी अब तक?
आज वक्त मिला है,
खुद को परखने का |
हौसला, हिम्मत दोनों ही है मन में,
आज वक्त मिला है,
इनका इम्तिहान लेने का ।
ऐ कलम तू मेरा जरिया है,
खुद से रूबरू होने का |
धोखे की इस दुनिया में,
न जाने कितनों को धोखे दिए ।
अब एहसास हुआ,
धोखे की सच्चाई का ।
क्रोध के आवेश में,
न जाने कितने रिश्ते खो दिए,
सहम गई खुद से में देख,
चेहरा अंदर के शैतान का ।
अब इस विषाद का अर्थ नहीं,
समय मिला है मंथन का ।
ऐ कलम तू मेरा जरिया है,
खुद से रूबरू होने का |
जीवन के इस सफर में,
न जाने कितने दिल दुखाए,
अब सब की मुस्कुराहट ही,
जरिया है मेरे पश्च्याताप का ।
हर दिन की एक रात है,
आज रात के बाद की सुबह है ।
ऐ नयी सुबह, तू मेरी आस है,
खुद को एक मौका देने का ।
विश्वास है मन में,
फिर से खड़ा होने का ।
सपने कई हैं, तमन्ना भी कम नहीं,
आज फिर से मन है,
कुछ कर दिखाने का ।
अपने बिखरे सपनों को,
नये पंख लगाने का ।
ऐ कलम तू मेरा जरिया है,
खुद से रूबरू होने का |