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रूबरू


ऐ कलम तू मेरा जरिया है,

खुद से रूबरू होने का |

कितना सच, कितना झूठ,

एक पहेली से उभरने का |

किस धोखे के आवरण में,

जी रही थी अब तक?

आज वक्त मिला है,

खुद को परखने का |

हौसला, हिम्मत दोनों ही है मन में,

आज वक्त मिला है,

इनका इम्तिहान लेने का ।

ऐ कलम तू मेरा जरिया है,

खुद से रूबरू होने का |

धोखे की इस दुनिया में,

न जाने कितनों को धोखे दिए ।

अब एहसास हुआ,

धोखे की सच्चाई का ।

क्रोध के आवेश में,

न जाने कितने रिश्ते खो दिए,

सहम गई खुद से में देख,

चेहरा अंदर के शैतान का ।

अब इस विषाद का अर्थ नहीं,

समय मिला है मंथन का ।

ऐ कलम तू मेरा जरिया है,

खुद से रूबरू होने का |

जीवन के इस सफर में,

न जाने कितने दिल दुखाए,

अब सब की मुस्कुराहट ही,

जरिया है मेरे पश्च्याताप का ।

हर दिन की एक रात है,

आज रात के बाद की सुबह है ।

ऐ नयी सुबह, तू मेरी आस है,

खुद को एक मौका देने का ।

विश्वास है मन में,

फिर से खड़ा होने का ।

सपने कई हैं, तमन्ना भी कम नहीं,

आज फिर से मन है,

कुछ कर दिखाने का ।

अपने बिखरे सपनों को,

नये पंख लगाने का ।

ऐ कलम तू मेरा जरिया है,

खुद से रूबरू होने का |

- निकिता मुँधड़ा

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