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शून्य



शून्य से फिर शून्य तक

एक चक्रव्यूह में बंधा,

जीवन देन है ईश्वर की

निरीश्वर है यह बंदा।


निरंकार सदैव रहना

अहंकार से मुक्त होना,

धरती से आकाश तक

सदैव घूमते रहना।


मनुष्य का शरीर

एक ईश्वरीय अंश है,

भक्ति करना सदा

हर क्षण का काम है।


मुक्त होकर हर चक्र से

चौरासी लाख योनीयों से,

जिंदगी को सफल बनाने

ईश्वरमय होना सार है।


- डॉ. चित्रा मिलिंद गोस्वामी

 

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