वीर सावरकर और सामाजिक कार्य
वीर सावरकरजी के १३८ वी जयंती के अवसर पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक और
The Leading Phase प्रस्तुत करते है, 'वीर सावरकर सप्ताह'.
स्वातंत्र्यवीर सावरकर यह नाम लेते ही उनके व्यक्तिमत्व के अनेक पहलू हमारी आंखों के सामने उभर आते हैं| वे स्वतंत्रता संघर्ष के अग्रिम क्रांतिकारक माने जाते हैं। लेकिन उनकी पहचान केवल यहां तक ही सीमित नही है। वे एक तत्त्वचिंतक, समाजसुधारक तथा एक श्रेष्ठ साहित्यिक भी थे। अपनी मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम, धर्म के प्रति उनकी श्रद्धा तथा अपने हिंदू समाज का उद्बोधन तथा उद्धारण करने की तीव्र तथा दुर्दम्य इच्छाशक्ति उनके लिए हमारे दिलोंमे एक विशेष स्थान अंकित करती है।
जिस प्रकार वीर सावरकर का देश के स्वतंत्रता के लिए किया हुआ कार्य केवल अवर्णनीय है| उसी प्रकार उनका सामाजिक कार्य भी स्वतंत्र भारतकी विचारधारा निर्माण मे बहुत महत्वपूर्ण है। उनके अलग-अलग क्षेत्रोंमे किए हुए योगदानसे हमें उनकी दूरगामी दृष्टि की झलक दिखाई देती है| जातिभेद का उन्मूलन, अस्पृश्यता निवारण, भाषाशुध्दी, अंधश्रध्दा निर्मलून, लिपी सुधारण, हिंदूंओंका संघटन तथा शुद्धिकरण इत्यादि अनेक क्षेत्रोंमे उनका असीम योगदान है| वे खुद भी कहते है, कि "चाहे लोग मेरी वो मार्सेलिस की छलांग भूल जाए, पर मेरे सामाजिक विचार उनके दिलो-दिमाग मे जिंदा रहे।" जाति-धर्म से परे, विज्ञाननिष्ठ भारत का सपना वे देखा करते थे। "जिसकी पितृभू तथा पुण्यभू यह भारतभू है, वे सब हिंदु|" इतना व्यापक उनका हिंदुत्व का धोरण था।
6 जनवरी को 1924 को सावरकर जी की आजीवन कारावास से जब मुक्तता हुई, उन्हें रत्नागिरी में स्थान बद्ध किया गया| लेकिन उसी वक्त रत्नागिरी मे फैली महामारी के कारण उन्हें नासिक जाकर रहने की अनुमति मिल गई| इसके बाद सावरकर जी ने महाराष्ट्र में जगह जगह पर अपने भाषणो द्वारा समाज उद्बोधन का काम किया|
सबसे पहले अस्पृश्यता निवारण पर अपना ध्यान दिया| उन्होंने लोगों को समझाया कि जब तक हम हिंदू एक दूसरेसे आदर के साथ बर्ताव नहीं करेंगे, तब तक हिंदू राष्ट्र संगठन का कार्य बहुत मुश्किल है| उस वक्त एक जाति का मनुष्य दूसरे मनुष्य को खुद से नीचा समझता था| यहां तक की ऊंची जाति वाले नीची जाति वालों के हाथ का खाना खाना भी निषिद्ध समझते थे| एकबार सावरकर जी ने नीची समझने वाली जाति के एक व्यक्ति के हाथ का दूध पिया और लोगों को समझाया की हमें यह भेद अब नष्ट करना है| "हमारा धर्म हमारे पेट से नही बल्कि हमारे हॄदय से बनता है|"
सावरकर जी ने कई मंदिर अस्पृश्य लोगोंके लिए खुलवाएं| सभी हिंदु जहां जाकर भगवान के दर्शन कर सके, ऐसा मंदिर होना चाहिए, इसलिए उन्होंने रत्नागिरीमें भागोजी शेठ कीर के आर्थिक सहयोग से पतितपावन मंदिर बनवाया| वे पहले भारतीय राजनीतिक कैदी थे जिन्होने एक अछूत को मन्दिर का पुजारी बनाया था।
समाज प्रबोधन का दूसरा अत्यंत महत्वपूर्ण जो कार्य उन्होंने किया वह था, महिलाओं के उद्बोधन का| उस वक्त समाज में स्त्रियों को विशेष महत्व नहीं दिया जाता था, तथा लड़कियों के लालन-पालन में उनके माता-पिता इतना ध्यान नहीं देते थे जितना कि लड़कों के! सावरकर जी ने लोगों को समझाया की लड़कियां ही आगे आने वाली पीढ़ी की जननी है| अगर वह धीरज रखने वाली तथा सामर्थ्यशाली नहीं होगी तो हमारी आगे आने वाली पीढ़ियां तेजस्वी कैसे हो सकती है| लड़कियों की शादी भी वह जब शादी करने योग्य हो जाती है तभी होनी चाहिए, ऐसा उनका आग्रह था|
वीर सावरकर जी ने देश के युवाओं को भी ललकारा । वैद्यकीय कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को उन्होंने बोला कि जब बुद्धिमान लोग लड़ना भी जान लेंगे तभी देश में कोई महान कार्य हो पाएगा। एक बार गांव में होलीकोत्सव के दौरान उन्होंने जो भाषण किया उसमें उन्होंने बताया अगर किसी को शिवाजी महाराज के राज्य में जन्म लेने का अभिमान है तो उन्होंने तीन चीजें आत्मसात करनी चाहिए
१• लाठी चलाने का प्रशिक्षण
२• अस्पृश्यता का पूर्णता निर्मूलन और
३• जीवन में स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग
उस वक्त जिन हिंदुओं को दूसरे धर्मों ने जबरदस्ती अपने धर्मों में लाया था, उनकी हिंदू धर्म में वापसी लोगों को मंजूर नहीं थी| वीर सावरकर जी ने इसका भी कड़ा निषेध किया| उनका मानना था, कि हमारा हिंदू धर्म इतना संकुचित और अल्पजीवी नहीं है कि जो दूसरे धर्मियोंका का बनाया खाना खाकर समाप्त हो जाए| , जिन लोगोंका जबरदस्तीसे धर्म परिवर्तन हुआ है, उनका शुद्धीकरण होना चाहिए| एकबार किसीने उन्हें पूछा कि, कारागृह में रहनेवाले इन चोर-डाकू लोगों को वापस हिंदू धर्म में लाकर क्या फायदा? तभी सावरकर जी ने उन्हें जवाब दिया कि, इन लोगों ने कुछ गलत काम किया हैं, इसका मतलब ये नहीं कि इनकी आगे आनेवाली पीढ़ियां चोर डाकू ही हो।
इसीप्रकार धर्मांतरण रोकने के लिए भी उन्होंने काफी कोशिशे की| उन्होंने अस्पृश्य लोगों को भी यह समझाया कि दूसरे धर्म के लोग अगर कुछ सुविधा के नाम पर आपको उनके धर्म प्रवेश करने के लिए मजबूर करते हैं तो वे वैसा कदापि ना करें और इस प्रकार की धमकीयां भी ना दे, क्योंकि उनके दूसरे धर्म में चले जाने से हिंदू धर्म खत्म नहीं हो सकता| उन्हें यह जानना जरूरी है की दूसरे लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए उन्हें अपनी तरफ खींच रहे हैं|
उन्होंने मराठी भाषा शुद्धि के लिए भी बहुत प्रयत्न किए तथा अनेक मराठी शब्द उपयोग में लाए| अंग्रेजी फ्रेंच उर्दू फारसी अलग-अलग भाषाओं से जो शब्द मराठी में आए थे उन शब्दों के लिए सावरकर जी ने प्रति शब्द बनाए। ऐसे अनेक शब्द जो हम मराठी में इस्तेमाल करते हैं जैसे कि क्रमांक, दिनांक, चित्रपट, महापौर, अर्थसंकल्प, दूरध्वनी, दूरदर्शन ऐसे अनेक शब्द है जो उन्होंने मराठी भाषा के शब्द भंडार में लाए हैं।
वीर सावरकर जी कार्य इतनी दिशाओं में इतनी हद तक फैला हुआ है कि उसके बारे में संक्षेप में लिखना मुमकिन नहीं। उनकी विचारधारा हर हिंदू के दिल मे ज्योत बनकर उजागर रहे, यही उनके प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजली।
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