top of page
Search

याद


आ तुझे लखनऊ की शाम,

और बनारस की सुबह कर लूँ,

कभी मिल मुझे फुरसत से,

तुझे मेरे सीने का दिल कर लूँ,

नदियां मिल जाती है संगम में जैसे,

तू भी मिले कभी तो तुझे इलाहाबाद कर लूँ,

तू मुझे सवारती रहे दिन भर पूरी उम्र,

मैं खुद को तेरे ज़ुल्फो का बाल कर लूँ,

सोचता हूं कि लिखूं कोई किताब,

और तुझे उस किताब की ग़ज़ल कर लूँ,

तेरा इंतज़ार चाहे जितना करना हो मुझे,

तेरी याद में खुद को मै ताज कर लूँ....

- अजय चौरसिया

 

Listen Our Podcast on Your Favorite Platform: Spotify | Google Podcast | Gaana | Saavn | Anchor Follow Us on Social Media Platforms: LinkedIn | Instagram | Facebook

bottom of page